अशरीरी-सिद्ध भगवान, आदर्श तुम्हीं मेरे



(तर्ज :- ऐ मेरे दिले नादां)

 

अशरीरी-सिद्ध भगवान, आदर्श तुम्हीं मेरे

अविरुद्ध शुद्ध चिद्घन, उत्कर्ष तुम्हीं मेरे ॥टेक॥

 

सम्यक्त्व सुदर्शन ज्ञान, अगुरुलघु अवगाहन

सूक्ष्मत्व वीर्य गुणखान, निर्बाधित सुखवेदन ॥

हे गुण! अनन्त के धाम, वन्दन अगणित मेरे ॥१॥

 

रागादि रहित निर्मल, जन्मादि रहित अविकल

कुल गोत्र रहित निष्कुल, मायादि रहित निश्छल ॥

रहते निज में निश्चल, निष्कर्म साध्य मेरे ॥२॥

 

रागादि रहित उपयोग, ज्ञायक प्रतिभासी हो

स्वाश्रित शाश्वत-सुख भोग, शुद्धात्म-विलासी हो ॥

हे स्वयं सिद्ध भगवान, तुम साध्य बनो मेरे ॥३॥

 

भविजन तुम-सम निज-रूप, ध्याकर तुम-सम होते

चैतन्य पिण्ड शिव-भूप, होकर सब दुख खोते ॥

चैतन्यराज सुखखान, दुख दूर करो मेरे ॥४॥