सम्राट चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न



सम्राट चन्द्रगुप्त के १६ स्वप्न

भगवान महावीर के पश्चात् पंचमकाल में आज से लगभग २००० वर्ष पूर्व अंतिम श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु के समय सम्राट चन्द्रगुप्त को उज्जैन नगरी में १६ स्वप्न आये थे। उन्होंने जाकर आचार्य भद्रबाहु से स्वप्न फल जानने की जिज्ञासा प्रगट की, तब निमित्तज्ञानी आचार्य ने उनका अर्थ बताया, वह निम्नलिखित है-

(१) स्वप्न - कल्पवृक्ष की टूटती हुई शाखायें देखी।

    अर्थ - पंचम काल में अंग शास्त्र के धारक मुनि नहीं होंगे|

(२) स्वप्न - सूर्य अस्त होते देखा।

    अर्थ - अब क्षत्रिय राजा जिनेश्वरी दीक्षा नहीं लेंगे|

(३) स्वप्न - समुद्र को सीमा का उल्लंघन करते देखा।

    अर्थ - क्षत्रिय राजा अन्यायी होंगे। 

(४) स्वप्न - १२ फनों का सर्प देखा।  

    अर्थ - बारह वर्ष का भयंकर अकाल पड़ेगा।

(५) स्वप्न - देव विमान वापस लौटते देखा।

    अर्थ - पंचम काल में स्वर्ग के देव नहीं आयेंगे।

(६) स्वप्न - ऊँट पर बैठा राजकुमार देखा। 

    अर्थ - राजा और मंत्रीगण दया रहित होंगे।

(७) स्वप्न - दो काले हाथीयों को लडते देखा। 

    अर्थ - समय पर पानी नहीं बरसेगा।

(८) स्वप्न - दो बछड़ों को रथ खींचते देखा।

    अर्थ - पंचमकाल में तरुण अवस्था में धर्म पालेंगे, वृद्धावस्था में शिथिल होंगे। 

(९) स्वप्न - नग्न स्त्रियों को देखा।

   अर्थ - मनुष्य अरिहंत प्रभु को छोड़कर कुदेवों को पूजेंगे।

(१०) स्वप्न - सोने के पात्र में कुत्ते को खीर खाते देखा।

    अर्थ - उच्च कुल की लक्ष्मी नीच कुल में रहेगी।

(११) स्वप्न - जुगनु को चमकते देखा।

    अर्थ - जैन धर्म की प्रभावना जुगनु के उजाले के समान कभी कभी चमकेगी, फिर अंधकार हो जावेगा।

(१२) स्वप्न - तीन दिशा में सूखा हुआ व दक्षिण दिशा में थोड़ा पानी ऐसा सरोवर देखा। 

    अर्थ - तीन दिशा में धर्म नहीं रहेगा और दक्षिण दिशा में थोड़ा धर्म का प्रभाव रहेगा।

(१३) स्वप्न - पत्थर पर कमल खिला देखा। 

    अर्थ - क्षत्रिय जैन धर्म से रहित होंगे, वैश्य लोग जैन धर्म पालेंगे और धनवान होंगे|

(१४) स्वप्न - छिद्र सहित चन्द्रमा देखा।

    अर्थ - जिन शासन में अनेक मत (भेद) हो जायेंगे।

(१५) स्वप्न - हाथी पर बन्दर बैठा देखा।

    अर्थ - नीच लोग राज्य करेंगे और क्षत्रिय  उनकी सेवा करेंगे।

(१६) स्वप्न - धूल में रत्नों का ढेर देखा।

    अर्थ - मुनियों में आपसी फूट होगी, वे मिलजुल कर नहीं रहेंगे।

 

इस प्रकार सम्राट चन्द्रगुप्त को स्वप्न दर्शन हुआ और आचार्य ने जो उनका अर्थ बताया वह आज हमें प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर हो रहा है।

 

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by Pradip jain at 10:07 PM, Aug 28, 2022