शास्त्र और विज्ञान में प्रदक्षिणा का मह्त्व



शास्त्र में प्रदक्षिणा का मह्त्व

प्रदक्षिणा शब्द को दो भागों (प्रा + दक्षिणा) में विभाजित किया गया है। इस शब्द में मौजूद प्रा से तात्पर्य है आगे बढ़ना और दक्षिणा मतलब चार दिशाओं में से एक दक्षिण की दिशा। इस परिक्रमा के दौरान प्रभु हमारे दाईं ओर गर्भ गृह में विराजमान होते हैं। शास्त्रों में माना गया है कि परिक्रमा से पापों का नाश होता है। तीनों प्रदक्षिणा मन की शुद्धता, वचन की शुद्धता और काय (शरीर) की शुद्धतापूर्वक की जाती है अर्थात है जिनेन्द्र! मैं अपने मन को विकारों से रहित कर, वचनों को सात्विक कर और शरीर को स्नानादि से शुद्ध करके आपको नमस्कार कर रहा/रही हूँ अर्थात त्रियोग की शुद्धि करके त्रियोगों से तीन बार प्रदक्षिणा देकर नमस्कार करता/करती हूँ |

विज्ञान में प्रदक्षिणा का महत्व

विज्ञान की नजर से देखें तो शारीरिक ऊर्जा के विकास में परिक्रमा का विशेष महत्व है। भगवान की मूर्ति और मंदिर की परिक्रमा हमेशा दाहिने हाथ से शुरू करना चाहिए, क्योंकि प्रतिमाओं में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर इस सकारात्मक ऊर्जा से हमारे शरीर का टकराव होता है, जिसके कारण शारीरिक बल कम होता है। जाने-अनजाने की गई उल्टी परिक्रमा हमारे व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचाती है।

दाहिने का अर्थ दक्षिण भी होता है,इस कारण से परिक्रमा को ‘प्रदक्षिणा’ भी कहा जाता है। इससे मन में विश्वास का संचार होकर जीवेषणा बढ़ती है।