श्री बाहुबली पूजन



कर्म-अरिगण जीत के, दरशायो शिव-पंथ |

सिद्ध-पद श्रीजिन लह्यो, भोगभूमि के अंत ||

समर-दृष्टि-जल जीत लहि, मल्लयुद्ध जय पाय |

वीर-अग्रणी बाहुबली, वंदौं मन-वच-काय ||

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलीपरमयोगीन्द्राय! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (आह्वाननं)

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलीपरमयोगीन्द्राय! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (स्थापनम्)।

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलीपरमयोगीन्द्राय! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (सन्निधिकरणम्)।

 

(अष्टक)

जन्म-जरा-मरणादि तृषा कर, जगत-जीव दु:ख पावें |

तिहि दु:ख दूर-करन जिनपद को, पूजन-जल ले आवें ||

परम-पूज्य वीराधिवीर जिन, बाहुबली बलधारी |

तिनके चरण-कमल को नित-प्रति, धोक त्रिकाल हमारी ||

ॐ ह्रीं  श्रीबाहुबलीपरमयोगीन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।१।

 

यह संसार मरुस्थल-अटवी, तृष्णा-दाह भरी है |

तिहि दु:खवारन चंदन लेके, जिन-पद पूज करी है ||

परम-पूज्य वीराधिवीर जिन, बाहुबली बलधारी |

तिनके चरण-कमल को नित-प्रति, धोक त्रिकाल हमारी ||

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलीपरमयोगीन्द्राय भवताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।२।

 

स्वच्छ शालि शुचि नीरज रज-सम, गंध-अखंड प्रचारी |

अक्षय-पद के पावन-कारन, पूजें भवि जगतारी ||

परम-पूज्य वीराधिवीर जिन, बाहुबली बलधारी |

तिनके चरण-कमल को नित-प्रति, धोक त्रिकाल हमारी ||

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलीपरमयोगीन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।३।

 

हरि हर चक्रपति सुर दानव, मानव पशु बस जा के |

तिहि मकरध्वज-नाशक जिन को, पूजें पुष्प चढ़ा के ||

परम-पूज्य वीराधिवीर जिन, बाहुबली बलधारी |

तिनके चरण-कमल को नित-प्रति, धोक त्रिकाल हमारी ||

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलीपरमयोगीन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।४।

 

दु:खद त्रिजग-जीवन को अति ही, दोष-क्षुधा अनिवारी |

तिहि दु:ख दूर-करन को, चरुवर ले जिन-पूज प्रचारी ||

परम-पूज्य वीराधिवीर जिन, बाहुबली बलधारी |

तिनके चरण-कमल को नित-प्रति, धोक त्रिकाल हमारी ||

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलीपरमयोगीन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।५।

 

मोह-महातम में जग जीवन, शिव-मग नाहिं लखावें |

तिहि निरवारन दीपक कर ले, जिनपद-पूजन आवें ||

परम-पूज्य वीराधिवीर जिन, बाहुबली बलधारी |

तिनके चरण-कमल को नित-प्रति, धोक त्रिकाल हमारी ||

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलीपरमयोगीन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।६।

 

उत्तम धूप सुगंध बनाकर, दश-दिश में महकावें |

दशविध-बंध निवारन-कारण, जिनवर पूज रचावें ||

परम-पूज्य वीराधिवीर जिन, बाहुबली बलधारी |

तिनके चरण-कमल को नित-प्रति, धोक त्रिकाल हमारी ||

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलीपरमयोगीन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।७।

 

सरस सुवर्ण सुगंध अनूपम, स्वच्छ महाशुचि लावें |

शिवफल कारण जिनवर-पद की, फलसों पूज रचावें ||

परम-पूज्य वीराधिवीर जिन, बाहुबली बलधारी |

तिनके चरण-कमल को नित-प्रति, धोक त्रिकाल हमारी ||

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलीपरमयोगीन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।८।

 

वसु-विधि के वश वसुधा सब ही, परवश अतिदु:ख पावें |

तिहि दु:ख दूरकरन को भविजन, अर्घ्य जिनाग्र चढ़ावें ||

परम-पूज्य वीराधिवीर जिन, बाहुबली बलधारी |

तिनके चरण-कमल को नित-प्रति, धोक त्रिकाल हमारी ||

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलीपरमयोगीन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।९।

 

जयमाला

(दोहा)

आठ-कर्म हनि आठ-गुण, प्रगट करे जिनरूप |

सो जयवंतो बाहुबली, परम भये शिवभूप ||

(कुसुमलता छन्द)

जय! जय! जय! जगतार-शिरोमणि क्षत्रिय-वंश अशंस महान |

जय! जय! जय! जगजन-हितकारी दीनो जिन उपदेश प्रमाण ||

जय! जय! चक्रपति सुत जिनके, शत-सुत जेष्ठ-भरत पहिचान |

जय! जय! जय! श्री ऋषभदेव जिन सो जयवंत सदा जग-जान ||१||

 

जिनके द्वितीय महादेवी शुचि नाम सुनंदा गुण की खान |

रूप-शील-सम्पन्न मनोहर तिनके सुत बाहुबली महान ||

सवा पंच-शत धनु उन्नत तन हरित-वरण शोभा असमान |

वैडूर्यमणि-पर्वत मानों नील-कुलाचल-सम थिर जान ||२||

 

तेजवंत परमाणु जगत में तिन करि रच्यो शरीर प्रमाण |

सत वीरत्व गुणाकर जाको निरखत हरि हरषो उर आन ||

धीरज अतुल वज्र-सम नीरज वीराग्रणी सम अति-बलवान |

जिन छवि लखि मनु शशि-रवि लाजे कुसुमायुध लीनों सुपुमान ||३||

 

बालसमय जिन बाल चन्द्रमा शशि से अधिक धरे दुतिसार |

जो गुरुदेव पढ़ाई विद्या शस्त्र-शास्त्र सब पढ़ी अपार ||

ऋषभदेव ने पोदनपुर के नृप कीने बाहुबली कुमार |

दई अयोध्या भरतेश्वर को आप बने प्रभुजी अनगार ||४||

 

राज-काज षट्खंड-महीपति सब दल लै चढ़ि आये आप |

बाहुबली भी सन्मुख आये मंत्रिन तीन युद्ध दिय थाप ||

दृष्टि नीर अरु मल्ल-युद्ध में दोनों नृप कीजो बलधाप |

वृथा हानि रुक जाय सैन्य की यातैं लड़िये आपों आप ||५||

 

भरत बाहुबली भूपति भाई उतरे समर-भूमि में जाय |

दृष्टि-नीर-रण थके चक्रपति मल्लयुद्ध तब करो अघाय ||

पगतल चलत चलत अचला तब कंपत अचल-शिखर ठहराय |

निषध नील अचलाधर मानो भये चलाचल क्रोध बसाय ||६||

 

भुज-विक्रमबली बाहुबली ने लिये चक्रपति अधर उठाय |

चक्र चलायो चक्रपति तब सो भी विफल भयो तिहि ठाय ||

अतिप्रचंड भुजदंड सूंड-सम नृप-शार्दूल बाहुबलि-राय |

सिंहासन मँगवाय जास पे अग्रज को दीनों पधराय ||७||

 

राज रमा दामासुर धनमय जीवन दमक-दामिनी जान |

भोग भुजंग-जंग-सम जग को जान त्याग कीनों तिहि थान ||

अष्टापद पर जाय वीर नृप वीर व्रती धर लीनों ध्यान |

अचल-अंग निरभंग संग-तज संवत्सर लों एक ही थान ||८||

 

विषधर बांबी करी चरनन-तल ऊपर बेल चढ़ी अनिवार |

युगजंघा कटि बाहु बेढ़िकर पहुँची वक्षस्थल पर सार ||

सिर के केश बढ़े जिस माँहीं नभचर-पक्षी बसे अपार |

धन्य-धन्य इस अचल-ध्यान को महिमा सुर गावें उर-धार ||९||

 

कर्म नासि शिव जाय बसे प्रभु ऋषभेश्वर से पहले जान |

अष्ट-गुणांकित सिद्ध-शिरोमणि जगदीश्वर-पद लह्यो पुमान ||

वीरव्रती वीराग्रगण्य प्रभु बाहुबली जगधन्य महान |

वीरवृत्ति के काज ‘जिनेश्वर’ नमे सदा जिन-बिंब प्रमान ||१०|

 

(दोहा)

श्रवनबेलगुल इन्द्रगिरि, जिनवर बिंब प्रधान |

सत्तावन फुट उतंग तनो, खड्गासन अमलान ||

अतिशयवंत अनंत बल धारक बिंब अनूप |

अर्घ्य चढ़ाय नमौं सदा, जय जय जिनवर भूप||

ॐ ह्रीं कर्मारिविजयी वीराधिवीर वीराग्रणी श्रीबाहुबली स्वामिने अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।