बाल संस्कार सौरभ भाग-१(ऐसे गीत गाया करो.... कहानी)



ऐसे गीत गाया करो

उठे सब के कदम तरा रम पम पम, कभी ऐसे गीत गाया करो

कभी खुशी कभी गम तरा रम पम पम, हँसो और हँसाया करे।

 

मेरे प्यारे-प्यारे भैया, मेरे अच्छे-अच्छे भैया, जरा मंदिर में आया करो।

कभी पूजा, कभी आरती, कभी आरती, कभी पूजा, कभी दोनों रचाया करो।

 

मेरी प्यारी-प्यारी बहना, मेरी अच्छी-अच्छी बहना, पाठशाला में जाया करो।

कभी भाग छहढ़ाला, छहढाला कभी भाग, कभी दोनों पढ़ आया करो।

 

मेरे प्यारे प्यारे पापा, मेरे अच्छे अच्छे पापा, जय तीर्थ कराया करो।

कभी सम्मेदशिखरजी, कभी पावापुरीजी, कभी दोनो कराया करो।

 

मेरी प्यारी-प्यारी मम्मी, मेरी अच्छी-अच्छी मम्मी, कभी चौका लगाया करो।

कभी मुनि कभी आर्यिका, कभी ऐलक कभी छुल्लक, कभी सब को पड़गाया करो।

 

मेरी प्यारी-प्यारी नानी, मेरी अच्छी-अच्छी नानी, रोज कहानी कहानी सुनाया करो।

कभी सीता. कभी मैंना, कभी सोमा, कभी तारा, कभी सब की सुनाया करो।

 

मेरे प्यारे प्यारे नाना, मेरे अच्छे-अच्छे नाना, कभी दान कराया करो।

कभी औषध, कभी आहार, कभी अभय, कभी ज्ञान, कभी चारों कराया करो।

उठे सब के कदम...

 

नाक कटी बेईमानी में

एक था ग्वाला, गायों को था पाला, 

दुध बेचने जाता था, पैसा खुब कमाता था।

 

लोभ उससे आ जाता है, पानी में दुध मिलता है,

बंदर ने यह देख लिया, मन ही मन मे सोच लिया।

 

दुध बेचकर ग्वाला आया, आकर नदी में लगा नहाया,

उसी समय वह बंदर आया, पैसे की थैली लेकर भागा।

 

थैली मे से पैसे निकाले, आधे पैसे नदी में डाले,

आधे पैसे तू ले ग्वाले, अपनी करनी का फल पाले।

 

पानी का धन पानी में, नाक कटी बेईमानी में।

आया मजा कहानी में, मत डुबो बेईमानी में।

 

शास्त्र दान का फल

कोण्डेश ग्वाला जिसका नाम, गाय चराना उसका काम।

गायें लेकर गया था जंगल, बादल बरसे करने मंगल।

 

वृक्ष के नौचे बैठने आया, कोटर मे उसे शास्त्र दिखाया।

शास्त्र को लेकर वह घर आया, धूप में रखकर उसे सुखाया।

 

उस जंगल में मुनिर आये, ग्वाला फूला नहीं समावे

 ग्वाला पहुँचा शास्त्र को लेकर, धन्य हुआ वह मुनि को देकर।

 

शास्त्र दान का यह फल पाया, ग्वाला कुंद कुंद कहलाया

शास्त्र दान की शिक्षा पाओ, पढ़े सुनो जीवन में लाओ।