आत्मा हूं, आत्मा हूं, आत्मा...



तर्ज - दिल के अरमा आसुओं...

आत्मा हूँ आत्मा हूँ आत्मा।

मैं सदा ज्ञायक-स्वभावी आत्मा… ॥टेक॥

 

शस्त्र से भी, मैं कभी कटता नहीं।

अग्नि से भी, मैं कभी जलता नहीं ।

जल गलाये तो कभी गलता नहीं।

मैं सदा… ॥१॥

 

चर्म चक्षु से कभी दिखता नहीं।

मूर्ख नर अज्ञान वश जाने नहीं।

ज्ञानियों की साध्य-साधक आत्मा।

मैं सदा… ॥२॥

 

क्रोध माया मान से भी भिन्न हूँ।

लोभ अरु रागादि से भी भिन्न हूँ।

भाव कर्मों से रहित मैं आत्मा।

मैं सदा… ॥३॥

 

गोरा काला जो भी दिखता चाम है।

मोटा पतला होना उसका काम है।

सब शरीरों से रहित मैं आत्मा ॥

मैं सदा… ॥