महावीर स्वामी निर्वाण कथा



 

    वर्तमान चौबीसी के अंतिम २४ वे तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म कुण्डलपुर नगरी में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को हुआ था। भगवान महावीर स्वामी के ४ कल्याणक हो गए थे - गर्भ कल्याणक, जन्म कल्याणक, तप कल्याणक और ज्ञान कल्याणक। जैसे ही भगवान का ज्ञान कल्याणक हुआ तब कुबेर ने सौधर्म इन्द्र की अनुमति से एक सुन्दर समवशरण की रचना की। सभी देव देवियाँ, मुनि, आर्यिका, तिर्यंच समवशरण में सम्मिलित हुए और भगवान का मंगल उपदेश सुनने की प्रतीक्षा कर रहे थे। भगवान महावीर स्वामी को केवल ज्ञान के ६६ दिनों तक भगवान ने कोई उपदेश नहीं दिया था और केवल ज्ञान के पश्चात भी मौन ही थे। भगवान की दिव्य ध्वनि इतने दिनों के पश्चात भी नहीं खीरी थी, तब इन्द्र ने अवधि ज्ञान से जाना की वहा पर कोई योग्य गणधर नहीं है।(गणधर - जो भगवन के उपदेश को सभी को समझाते है और उपदेश को १२ भागो में संगठित करते है जिन्हे द्वादशांग कहते है।)

    सौधर्म इन्द्र ने जाना की एक बहुत ज्ञानी व्यक्ति है जिनका नाम इंद्रभूति गौतम है जो भगवान के गणधर बनने के योग्य है। इंद्रभूति गौतम बहुत शास्त्रों के ज्ञाता थे परन्तु उन्हें अपने ज्ञान पर बहुत अहंकार था। वो किसी को भी अपना दूत नहीं मानते थे। इसलिए उनको भगवान के समवशरण में लाना कठिन था। तब इंद्र ने एक ब्राह्मण का रूप बनाया और एक श्लोक लेकर इंद्रभूति के पास चले गए और इंद्रभूति से उस श्लोक का अर्थ पूछा, परन्तु इंद्रभूति भी उस श्लोक का अर्थ नहीं बता पाए। इंद्रभूति ने सोचा के इस ब्राह्मण के गुरु कौन है, इनके पास ये श्लोक कहां से आया जिसका अर्थ मुझे भी नहीं पता, तब सौधर्म इन्द्र इंद्रभूति गौतम को समवशरण में ले गए। इंद्रभूति गौतम जैसे ही समवशरण पहुंचे वहां मानस्तंभ को देखकर उनका अहंकार गलित हो गया। समवशरण में जाकर गौतम स्वामी ने भगवान से आत्मा, जीव के बारे में पूंछा, तब ६६ दिन पश्चात् भगवान् महावीर की दिव्य ध्वनि खीरी जिससे गौतम गणधर की सभी शंकाये दूर हो गयी, और उन्होंने अपने ५०० शिष्यों के साथ जैनेश्वरी दीक्षा ले ली और मुनि बन गए। जिस दिन भगवान महावीर की दिव्य ध्वनि खीरी उस दिन को वीर शासन जयंती  के रूप में मनाया जाता है। भगवान का समवशरण जगह जगह विहार करते हुए पावापुर नगर के मनोहर वन में पहुंचा।

    कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को भगवान महावीर ने समवशरण को छोड़कर एक स्थान पर ध्यान में लीन हो गए। वह त्रयोदशी(तेरस) धन्य हो गयी और वह दिन धन्य तेरस कहलायी। यह दिन दीपावली से दो दिन पूर्व आता है। ध्यान में लीन होने के दो दिन पश्चात कार्तिक कृष्ण अमावस्या को भगवान ने शुक्ल ध्यान लगाया ओर सभी घातिया-अघातिया कर्मो का नाश कर मोक्ष(निर्वाण) प्राप्त किया और उनकी आत्मा सिद्धशिला में विराजमान हो गयी। भगवान के निर्वाण प्राप्त करने के उपरांत प्रात:कालीन बेला में देवों द्वारा दिव्य दीपों को आलोकित कर निर्वाण महोत्सव मनाया गया, जिसे दीपावली कहते है। कार्तिक कृष्ण अमावस्या को प्रातः भगवान महावीर को मोक्ष की प्राप्ति हुई और उस दिन सांयकाल में गणधर गौतम स्वामी को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। इस अवसर पर दीपावली के दिन सभी को सकारात्मक सोच के साथ मंदिर जाना चाहिए, भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए और सांय काल भगवान की स्तुति वंदना करनी चाहिए।

 

Bhut sunder 👌🏻👌🏻🙏🙏🙏

by Prachi jain at 04:49 PM, Nov 12, 2020