गुरु अर्चना



 

दया करो संकट हरो, विद्या गुरु भगवान।

मुझे भरोसा आप पर, रखना मेरा ध्यान॥1॥

 

गिरे न मेरा मन कभी, रहे माथ पर हाथ।

मैं बालक डरपोक हूँ, रखना मुझको साथ॥2॥

 

गुरु ही मेरे अंग हैं, गुरु ही मेरे प्राण।

यह जीवन गुरु के बिना, जैसा इक श्मशान॥3॥

 

शिष्य भले ही दूर हैं गुरु ध्यान।

अंतरंग के भाव से, देते हैं वरदान॥4॥

 

गुरु हैं जग में कल्पतरु, फल उपदेश महान्‌।

जो भी खाता है इसे, बनता वह भगवान5॥

 

गुरु गंधोदक से मिटे, तन मन के सब रोग।

भक्ति भाव के साथ ही, ले लो सारे लोग॥6॥

 

मेरे गुरुवर मेघ हैं, बच्चे हम सब मोर।

नाच रहे हैं प्यार से देखत इनकी ओर॥7॥

 

विद्यासागर चरण की, जिसे मिली है धूल।

उसे मिला है जगत में, मन वांछित फलफूल॥8॥

 

मन वच तन से कर रहे, जो निज पर उद्धार।

ऐसे विद्या संत को, प्रणाम बारम्बार॥9॥

 

विद्यासागर में भरे, रत्न अनंतानंत।

इन्हें प्राप्त कर बन रहे, संत लोक श्रीमंत॥10॥

 

दुर्जन के दुर्गुण मिटे, रोगी के सब रोग।

साधु साधे साध्य को, पा गुरुवर का योग॥11॥

 

धर्म धुरंधर गुरु रहे, करूणा के अवतार।

भविजन को भव-सिन्धु में, ये ही तारणहार॥12॥

 

गुरु ही मेरे त्राण हैं, गुरु ही मेरे प्राण।

गुरु ही मेरी शान हैं, गुरु ही मम पहचान॥13॥

 

विद्यासागर गुरु मिले, हमें भाग्य से आज।

भवसागर से तैरने, ये हैं परम जहाज ॥14॥

 

गुरु स्वाती की बूँद हैं, शिष्य सीप सम जान।

गुरु आज्ञा संयोग है, मोती केवलज्ञान॥15॥

 

मैं पूजूँ गुरदेव को, मम॒ उर में रख पाद।

जब तक शिव सुख ना मिले, करूँ इन्हीं को याद॥16॥

 

भव आतप से जल रहे, थे हम सब के प्राण।

विद्यासागर नीर से, मिला सु जीवन दान॥17॥

 

मेरे गुरु के पूज्य है, गज-रेखा के पैर। 

हिंसक पशु भी छोड़ते, इत आकर सब वैर॥18॥

 

विद्यासागर के चरण, जग में पूज्य महान।

शरणागत को शरण हैं, बनने को भगवान॥19॥

 

गुरुवर ने जो भी दिया, मुझ को यह आधार।

युगों युगों तक मैं नहीं, भूलूँगा उपकार॥20॥

 

विद्यासागर सूर्य हैं, शिष्य किरण सम जाना

इनके दर्शन मात्र से, मिटता तम अज्ञान21॥

 

विद्या गुरुवर ने दिया, जन-जन को यह सीख।

निज में निधी अपार है, मत मांगों रे भीख॥22॥