Posted on 04-Nov-2020 04:01 PM
मंगलमय जीवन बने, छा जाये सुख छाँव।
जुड़े परस्पर दिल सभी, टले अमंगल भाव ॥1॥
ही से भी? की ओर ही, बढ़ें सभी हम लोग।
छह के आगे तीन हो, विश्व शांति का योग ॥2॥
यही प्रार्थना वीर से, अनुनय से कर जोर।
हरी भरी दिखती रहे, धरती चारों ओर ॥3॥
गुरु चरणों की शरण में, प्रभु पर हो विश्वास।
अक्षय सुख के विषय में, संशय का हो नाश ॥4॥
मेरा-तेरा पन मिटे, भेदभाव का नाश।
रीति-नीति सुधरे सभी, वेद भाव में वास ॥5॥
ऊधम से तो दम घुटे, उद्यम से दम आय।
बनो दमी हो आदमी, कदम-कदम जम जाय ॥6॥
मरहम पट्टी बांध के, वृण का कर उपचार।
ऐसा यदि न बन सके, डंडा तो मत मार ॥7॥
नम्र बनो मानी नहीं, जीवन वर ना मौत।
बेत बनो न बट बनो, सुर-शिव-सुख का स्त्रोत ॥8॥
तन मन से औ वचन से, पर का कर उपकार।
रवि सम जीवन बस बने, मिलता शिव उपकार ॥9॥
दिखा रोशनी रोश न, शत्रु मित्र बन जाय।
भावों का बस खेल है, शूल फूल बन जाय ॥10॥
धोओ मन को धो सको, तन को धोना व्यर्थ।
खोओ गुण में खो सको, धन में खोना व्यर्थ ॥11॥
निर्धनता वरदान है, अधिक धनिकता पाप।
सत्य तथ्य की खोज में, निर्गुणता अभिशाप ॥12॥
अर्थ नहीं परमार्थ की, ओर बड़े भूपाल।
पालक जनता के बने, बनें नहीं भूचाल ॥13॥
दूषण ना भूषण बनो, बनो देश के भक्त।
उम्र बढ़े बस देश की, देश रहे अविभक्त ॥14॥
धर्म धनिकता में सदा, देश रहे बल जोर।
भवन वही बस चिर टिके, नींव नहीं कमजोर ॥15॥
कब तक कितना पूछ मत, चलते चल अविराम।
रुको-रुको यूँ सफलता, आप कहे यह धाम ॥16॥
गुण ही गुण पर में सदा, खोजूँ निज में दाग।
दाग मिटे बिन गुण कहाँ, तामस मिटते राग ॥17॥
पंक नहीं पंकज बनूँ, मुक्ता बनूँ न सीप।
दीप बनूँ जलता रहूँ, प्रभु-पद-पदम समीप ॥18॥
यही प्रार्थना वीर से, शान्ति रहे चहुँ ओर।
हिल मिलकर सब एक हों, बढ़ें धर्म की ओर ॥19॥
गोमटेश के चरण में, नत हो बारम्बार।
विद्यासागर कब बनूँ, भव सागर कर पार॥20॥
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