प्रायश्चित पाठ



(दिन रात मेरे ...)

शत शत प्रणाम करते, आशीष हमको देना।

दोषों को दूर करने, अपराध क्षम्य करना॥1॥

 

मन से वचन से तन से, अपराध पाप करते।

कृत कारितानुमत से, दुख शोक क्लेश सहते॥2॥

 

चारों कषाय करके, निज रूप को भुलाया।

आलस्य भाव करके, बहु जीव को सताया॥3॥

 

भोजन शयन गमन में, पापों का बंध बाँधा।

अज्ञान भाव द्वारा, अज्ञात पाप बाँधा॥4॥

 

दिन रात और क्षण क्षण, अपराध हो रहे हैं।

इस बोझ से दबे हम, पापों को ढो रहे हैं॥5॥

 

गुरुदेव की शरण में, प्रायश्चित लेने आये।

मुक्ति का राज पाने, भव रोग को नशाए॥6॥

क्षमा प्रार्थना

किया अपराध जो मैंने, तुम्हारे जाने अनजाने।

क्षमा करना सभी मुझको, क्षमा करता सभी जन को॥

 

सभी से मित्रता मेरे, किसी से बैर ना क्षण को।

यही है भावना मेरी, जिनेश्वर हो कृपा तेरी॥

 

किया उपयोग से छेदन, रहा हो भाव में वेदन।

उन्हीं को त्यागता हूँ मैं, रहे जो भाव वह मुझमें॥

 

क्षमा करना क्षमा करना, ना दिल में रोष को धरना।

शुद्ध दिल से माँगता हूँ, क्षमा भावों से झुकता हूँ॥