Posted on 22-Sep-2020 04:32 PM
पूज्यपाद गुरुपाद में, प्रणाम हो सौभाग्य।
पाप ताप संताप घट, और बढ़े वैराग्य ||1||
मत डर मत डर मरण से, मरण मोक्ष सोपान।
मत डर मत चरण से, चरण मोक्ष सुख पान ||2||
यथा दुग्ध में घृत तथा, रहता तिल में तेल।
तन में शिव है ज्ञात हो, अनादि का यह मेल।।3।।
ऐसा आता भाव है, मन में बारम्बार।
पर दुःख को यदि ना, मिटा सकता जीवन भार ||4||
पानी भरते देव हैं, वैभव होता दास।
मृग-मृगेन्द्र मिल बैठते, देख दया का वास ।।5।।
तत्व दृष्टि तज बुध नहीं, जाते जड़ की ओर।
सौरभ तज मल पर दिखा, भ्रमर भ्रमित कब और? ।।6।।
सब में वह ना योग्यता, मिले न सबको मोक्ष ।
बीज सीझते सब कहाँ, जैसे टर्रा मोठ।।7।।
किस किस को रवि देखता, पूछे जग के लोग।
जब जब देखें देखता, रवि तो मेरी ओर।।8।।
कंचन पावन आज पर, कल खानों में वास।
सुनो अपावन चिर रहा, हम सबका इतिहास ।।9।।
क्या था क्या हूँ क्या बनूं, रे मन अब तो सोच।
वरना मरना वरण कर, बार-बार अफसोस 10||
सब कुछ लखते पर नहीं, प्रभु में हास–विलास।
दर्पण रोया कब हँसा, कैसा यह संन्यास ||11 ||
आस्था का बस विषय है, शिव पथ सदा अमूर्त।
वायुयान पथ कब दिखा, शेष सभी पथ मूर्त ||12||
उपादान की योग्यता, निमित्त की भी छाप ।
स्फटिक मणि में लालिमा, गुलाब बिन ना आप ||13||
खून ज्ञान, नाखून से, खून रहित नाखून।
चेतन का संधान तन, तन चेतन से न्यून||14||
आत्मबोध घर में तनक, रागादिक से पूर।
कम प्रकाश अति धूम्र ले, जलता अरे कपूर ।।15।।
भटकी अटकी कब नदी, लौटी कब अध बीच।
रे मन! तू क्यों भटकता, अटका क्यों अधकीच? ||16।।
गौ-माता के दुग्ध सम, भारत का साहित्य ।
शेष देश के क्या कहें, कहने में लालित्य ।।17।।
अनल सलिल हो विष सुधा, व्याल माल बन जाए।
दया मूर्ति के दरस से, क्या का क्या बन जाए ||18 ||
जलेबियाँ ज्यों चासनी, में सनती आमूल ।।
दया धर्म में तुम सनो, नहीं पाप में भूल ||19।।
पूर्ण पुण्य का बन्ध हो, पाप मूल मिट जात।
दलदल पल में सब धुले, भारी हो बरसात||20||
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