Posted on 07-May-2020 09:46 PM
किसी समय राजपुरी के उद्यान में बहुत से ब्राह्मण लोग यज्ञ कर रहे थे, एक कुत्ता आया और अत्यधिक भूखा होने से उसने यज्ञ की सामग्री खानी चाही तथा झट से किसी थाल में मुँह लगा ही दिया। बस ! क्या था ? एक ब्राह्मण ने गुस्से में आकर उस कुत्ते को डंडे से खूब मारा जिससे वह मरणासन्न हो गया।
उधर से जीवंधरकुमार अपने मित्रों के साथ निकले। कुत्ते की दशा देखकर वे परमदयालु स्वामी वहीं बैठ गये। वे समझ गये कि अब यह कुत्ता बच नहीं सकता है। तब उन्होंने उसके कान में णमोकार मंत्र सुनाना प्रारम्भ किया। कुत्ते को इस मंत्र से बहुत ही शांति मिली। मित्र! यह मंत्र संकट के समय अमोघ उपाय है। वेदना में महाऔषधि है। वह कुत्ता भी बड़े प्रेम से कान उठाकर मंत्र को सुनता रहा। जीवंधर स्वामी बार-बार उसके ऊपर हाथ फेरकर उसे सांत्वना दे रहे थे।
इस मंत्र के प्रभाव से वह कुत्ता मरकर सुदर्शन नाम का यक्षेन्द्र देव हो गया।
अन्तर्मुहूर्त (48 मिनट) के भीतर ही भीतर उसका वैक्रियक शरीर नवयुवक के समान पूर्ण हो गया और उसे अवधिज्ञान प्रकट हो गया। तब उसने सब बातें जानकर देवगति को प्राप्त कराने वाले परमोपकारी गुरू जीवंधर कुमार के पास शीघ्र ही आकर नमस्कार किया। उस समय तक जीवंधर कुमार उस कुत्ते को मंत्र सुना ही रहे थे। उस देव ने आकर स्वामी की खूब स्तुति की और ‘‘समय पर मुझ दास को स्मरण करना’’ ऐसा कहकर चला गया।
बंधुवर ! जीवंधर के जीवन में बहुत से संकट के समय आये और इस देव ने आ-आकर रक्षा की, सेवा भक्ति की, अनेकों बार इस देव ने इनको सहयोग दिया तथा जीवन भर इनका भक्त कृतज्ञ बना रहा।
मनुष्य पर्याय पाकर और जैनकुल में जन्म लेकर तो इस मंत्र को प्रतिदिन, प्रतिक्षण जपते ही रहना चाहिये।
इस कथा से हमें कई शिक्षाएँ मिलती हैं –
कुत्ते आदि निर्दोष मूक पशुओं को मारना नहीं चाहिये व प्रत्येक जीव के प्रति करुणा भाव रखना चाहिए।किसी को संकट के समय या मरणासन्नावस्था में णमोकार मंत्र अवश्य सुनाना चाहिये।अपने प्रति उपकार करने वाले का कृतज्ञ बनकर बार-बार प्रत्युपकार करते रहना चाहिये।
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