बाल संस्कार सौरभ भाग-२(जैन, श्रावक,रत्नत्रय)



जैन

जैन - जो जिन का पथगामी हो, जैन उसे हम कहते हैं।

जिन - जीता जिनने इन्द्रिय मन, कहते हैं हम उनको जिन।

J - Justice जस्टिस - जिसमें न्याय, निष्पक्षता हो।

A - Affection अफेक्शन - जिसके अंदर प्रेम हो।

I - Intraffection इंट्राफेक्शन - जो गहन आध्यात्मिक रूचि वाला हो।

N - Novelty नॉवल्टी - जिसका न दया से भीगा हो।

ह जैन कहलाता है।

जैन धर्म - जिनेन्द्र भगवान द्वारा प्रवर्तित धर्म।

सच्चे जैनी के तीन चिन्ह -

जो सच्चे जैनी कहलाते, तीन चिन्ह को वे अपनाते।

- प्रथम देव दर्शन नित करता, दूजा दिन में भोजन करना।

- पानी सदा छान कर पीना, दया-धर्म अपनाकर जीना।

-  पहले तीन चिन्ह अपनाओ, तभी सच्चे जैनी कहाओ।

 

श्रावक

श्रा - श्रद्धावान - सम्यग्दर्शन

व - विवेकवान - सम्यग्ज्ञान

क - क्रियावान - सम्यक्चारित्र

श्रावक के तीन भेद -  पाक्षिक, नैष्ठिक एवं साधक।

पाक्षिक - जो जैन कुल अनुसार आचरण करे।

नैष्ठिक - व्रतधारी श्रावक

साधक - सल्लेखनाधारी श्रावक

श्रावक के होते हैं कितने मूल गुण-

श्रावक के होते हैं आठ मूल गुण।

श्रावक के होते हैं कितने आवश्यक-

श्रावक के होते हैं छः आवश्यक

श्रावक के होते हैं कितने व्रत-

श्रावक के होते हैं - बारह व्रत।

श्रावक की होती है कितनी प्रतिमाएँ-

श्रावक की होती है ग्यारह प्रतिमाएँ।

श्रावक के अष्टमूलगुण-

मांस का - त्याग

मद का - त्याग

मधु का - त्याग

पाँच उदम्बर फलों का - त्याग

रात्रि भोजन का - त्याग

देव दर्शन का - नियम

जीव दवा करने का - नियम

पानी छानकर पीने का - नियम

 

 रत्नत्रय

सम्यग्दर्शनज्ञानचरित्राणि मोक्षमार्ग:।

सम्यग्दर्शन - सच्ची श्रद्धा

सम्यग्ज्ञान - यथार्थ ज्ञान

सम्यक्चारित्र - सच्ची श्रद्धा और ज्ञान युक्त सदाचरण।

सच्ची श्रद्धा - सच्चे देव, शास्त्र, गुरू पर दृढ़ श्रद्धा।

सच्चे देव - जो वीतरागी, सर्वज्ञ एवं हितोपदेशी हों।

सच्चे शास्त - जो सच्चे देव द्वारा प्रणीत हो।

सच्चे गुरु - जो आरंभ परिग्रह से रहित हो

देखभाल कर चलना

देखना - सम्यग्दर्शन 

भालना - सम्यग्ज्ञान

चलना - सम्यक्चारित्र

विशेष - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र रूपी तीन रत्नो द्वारा ही हम अपना लौकिक और पारलौकिक जीवन सफल बना सकते हैं।