बाल संस्कार सौरभ भाग-२(तत्व एवं पदार्थ, द्रव्य, अष्टकर्म, अष्टद्रव्य)



तत्त्व एवं पदार्थ

1. तत्त्व किसे हम कहते हैं ?

   तत्व माने वस्तु का यथार्थ स्वभाव

2. तत्त्व कितने होते हैं ?

   तत्व सात होते हैं।

3. तत्त्व कौन-कौन से होते हैं ?

  जीव, अजीव, आस्रव और बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष का पंथ

जीव - जिसमें जानने-देखने की शक्ति हो।

अजीव - जिसमें जानने-देखने की शक्ति न हो।

आस्रव - कर्मों का आगमन

बंध - जीव और कर्मों का एकमेक होना (दूध-पानी की तरह)

संवरआस्रव का निरोध 

निर्जरा - कर्मों का आंशिक रूप से झड़ना।

मोक्ष - कर्मों का सम्पूर्ण क्षय

विशेष

1. हमें इन सातों तत्वों को जानकर उनपर श्रद्धा करनी चाहिए, तभी हम सम्यकदृष्टि कहलायेंगे।

2. सात तत्वों में जीव तत्व ग्रहण करने योग्य है, अजीव, आस्रव एवं बंध छोड़ने योग्य है तथा संवर, निर्जरा एवं मोक्ष उपादेय है।

3. इन सात तत्वों में पुण्य-पाप जोड़ देने से नव पदार्थ होते हैं।

पुण्य किसे हम कहते हैं ? पाप किसे हम कहते हैं ?

अच्छा कार्य है पुण्य कहाता - बुरा कार्य है पाप कहाता।

काम करो तुम अच्छा - पाओगे सुख सच्चा।

बुरे कार्य को छोड़ो - धर्म से नाता जोड़ो।

 

द्रव्य

द्रव्य किसे कहते हैं ?

गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं।

द्रव्य कितने होते हैं ?

द्रव्य छः होते हैं।

द्रव्य कौन-कौन से होते हैं ?

जीव द्रव्य, पुद्गल द्रव्य, धर्म द्रव्य, अधर्म दव्य, आकाश द्रव्य और काल द्रव्य

जीव - जिसमें जानने-देखने की शक्ति हो।

पुद्गल - जिसमें रूप, रस, गंध एवं स्पर्श पाया जाए।

धर्म - जो गतिशील जीव और पुद्गलों की गति में सहायक हो।

अधर्म - जो ठहरते हुए जीव और पुद्गलों को ठहरने में सहायक हो।

आकाश - जो समस्त द्रव्यों को अवगाह/स्थान दें।

काल - जो प्रत्येक पदार्थ के परिणमन (परिवर्तन) में सहकारी हो।

विशेष

छः द्रव्यों के समूह को विश्व कहते हैं | यह विश्व अनादि-अनंत है। इसे बनाने वाला कोई नहीं है क्योंकि द्रव्य का लक्षण सत्‌ है।

 

अष्टकर्म 

1. कर्म कितने होते हैं?

   कर्म आठ होते हैं।

2. कौन कौन से होते हैं ?

   ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अंतराय, मोहनीय।

   आयु, नाम, गोत्र और वेदनीय

3. कर्म किसे कहते हैं?

   परतंत्र करे जो जीव को, कर्म उसे हम कहते हैं।

4. कर्म कितने होते हैं?

  कर्म आठ होते हैं -

1. ज्ञानावरण - जो आत्मा के ज्ञान गुण को ढाँके - कपड़ा

2. दर्शनावरण - जो आत्मा को दर्शन गुण को ढाँके - द्वारपाल

3. अन्तराय - जिसके उदय से दान लाभ भोग आदि में विघ्न आये - भण्डारी

4. मोहनीय- जो व्यक्त को विवेकशून्य कर उसके आचार एवं विचार शक्ति को बिगाड़े - शराब

5. आयु - जो हमें संसार मे रोके रहे - खूंटी

6. नाम - जिससे चित्र-विचित्र रूप बने - चित्रकार

7. गोत्र - जिससे उच्च व नीच कुल में उत्पन्न हो - कुम्हार

8. वेदनीय - जो हमें सुख-दुःख का अनुभव कराये - शहद लपेटी तलवार

विशेष

 इनमें शुरू के 4 घातिया कर्म तथा अंत के 4 अघातिया कर्म कहलाते हैं।

 

अष्टद्रव्य

अष्ट द्रव्य के नाम -

जल चन्दन अक्षत पुष्प चरु,अरु दीप धूप अति फल लावे।

पूजा को ठानत जो तुम जानत, सो नर ध्यानत सुख पावे।

 

अष्ट द्रव्य चढ़ाने का फल -

प्रासुक नीर चढ़ाते हैं, तीनो रोग नशाते हैं।

चंदन चरण चढ़ाते हैं, भव आताप नशाते हैं।

अक्षत चरण चढ़ाते है, अक्षय पद को पाते हैं।

लेकर सुमन चढ़ाते हैं, काम देव जय पाते हैं।

जो नैवेद्य चढ़ाते हैं, अपनी क्षुधा मिटाते हैं।

लेकर दीप जलाते हैं, तम को दूर भगाते हैं।

अग्नि में धुप जलाते हैं, कर्म सभी जल जाते हैं।

श्री फल सदा चढाते हैं, वे मुक्तिफल पा जाते हैं।

लेकर अर्घ्य चढ़ाते हैं, पद अनर्घ पा जाते हैं।

जो पूजन को आते हैं, पूजा रोज रचाते हैं

पूजन फल पा जाते हैं, भगवन से बन जाते हैं।