जैन कुलाचार



हमको बड़े भाग्य से उच्चकुल एवं जैन धर्म की प्राप्ति हुई है। अत: हमको अपना आचरण, खानपान आदि धर्म के अनुसार बनाना चाहिए जिसके लिए निम्न तीन बातों पर ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है जो सच्चे जैनी की पहचान है -

1. देवदर्शन -

हमको प्रतिदिन प्रातःकाल श्री जिनेन्द्र भगवान के दर्शन अवश्य करना चाहिए। जिसकी विधि इस प्रकार है- प्रातः उठते ही णमोकार मंत्र का स्मरण करना चाहिए। उसके बाद मंजन, स्नानादि क्रियाकर शुद्ध वस्त्र पहनकर हाथ में सामग्री लेकर, जीव जन्तुओं की रक्षा करते हुए जैन मंदिर जाना चाहिए। मंदिर के बाहर तीनबार “निःसहि” बोलना चाहिए। इसके बाद ओम्‌ जय, जय, जय, नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु बोलकर णमोकार मंत्र बोलना चाहिए इसके बाद बैठकर ढ़ोक देनी चाहिए। इसके उपरांत णमोकार मंत्र का महात्म्य (एसो पंच णमोयारो ...) तथा 24 तीर्थंकरो के नाम बोलने चाहिए। (यदि अर्घ्य याद हों तो अर्घ्य बोलकर सामग्री चढ़ाना श्रेष्ठ है) इसके बाद प्रभुपतित पावन, दर्शनं देव देवस्य, अहो जगत गुरूदेव, सकल ज्ञेयज्ञायक आदि स्तुति बोलते हुए भगवान की तीन प्रदक्षिणा देनी चाहिए। प्रदक्षिणा देते समय सभी दिशाओं में भगवान की तरफ देखते हुए नमस्कार करना चाहिए | इसके बाद पुनः बैठकर ढोक देकर गंधोदक लगाना चाहिये। गंधोदक लगाते समय यह मंत्र बोलना चाहिए।

निर्मलं निर्मलीकरण, पवित्रं पाप नाशनम्‌।

जिन गंधोदकं वंदे, अष्टकर्म विनाशनम्‌ ।।

इसके उपरांत नौ बार एमोकार मंत्र पढ़ने के बाद मंदिर जी में रखे हुए शास्त्र अवश्य पढ़ना चाहिए। यदि समय हो तो णमोकार मंत्र की एक माला जपनी चाहिए एवं भगवान की तरफ पीठ न करते हुए तीन बार “असहिबोलते हुये मंदिर जी से बाहर आना चाहिए। 

विशेष :- 1. मंदिर जी वे प्रवेश करते समय चमड़े आदि की अशुद्ध वस्तुएँ नहीं पहननी चाहिए।

         2. जूठे मुंह मंदिर जी में प्रवेश नहीं करना चाहिए।

         3. हाथ-पैर धोकर ही मंदिर जी में प्रवेश करना चाहिए।

        4. मंदिर जी में जब तक दर्शन करें तब तक भगवान की मूर्ति की ओर देखना चाहिए। अन्य ओर नजर नहीं करना चाहिए तथा किसी अन्य से कोई बात भी नहीं करनी चाहिए।

 

2. रात्रि भोजन त्याग -

जीवों की रक्षा करना हमारा प्रमुख कर्त्तव्य है। दिन में सूर्य की किरणें जीवों को उत्पन्न नहीं होने देतीं। जैसे हम देखते हैं कि बारिश के दिनों में सूर्य अस्त होते ही बिजली के बल्ब पर कीड़े आने लगते हैं जबकि वे दिन में नहीं आते। इससे सिद्ध होता है कि दिन में जीवों की उत्पत्ति बहुत कम या नहीं होती इसलिए हमको दिन में ही भोजन बनाना एवं करना चाहिए रात्रि में भोजन करने से मांस भक्षण का दोष लगता है। रात्रि में भोजन करके सो जाने से पाचन क्रिया खराब हो जाती है, जिससे कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते है। रात्रि में भोजन करते समय सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों का अभाव रहता है और हमें पूर्ण रूप से विटामिन डी नहीं मिल पाता है। अत: भोजन दिन में ही करना चाहिए।

 

3. पानी छानकर पीना -

पानी की एक बूँद में असंख्यात जीव होते हैं, ऐसा जैनाचार्यो ने बताया है। बिना छने पानी से उन जीवों का घात होता है और स्वास्थ्य भी बिगड़ता है। वैज्ञानिकों ने भी बिना छने पानी की एक बूँद में 36450 जीव बताये हैं। इसलिए सदा ही पानी छान कर पीना चाहिए। मोटे कपड़े का दोहरा छन्‍ना होना चाहिए (जिससे सूर्य की रौशनी न दिखे)। छना हुआ पानी 48 मिनट तक त्रस जीव रहित रहता है तदुपरांत उसमें त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं अत: उसे फिर से छानना चाहिए।

 

Bhut bdiya👌👌👌🙏

by Prachi jain at 10:54 PM, Dec 16, 2020