श्री पार्श्वनाथ-स्तोत्र



कविश्री द्यानतराय जी

नरेन्द्रं फणीन्द्रं सुरेन्द्रं अधीशं, शतेन्द्रं सु पूजें भजें नाय-शीशं |
मुनीन्द्रं गणीन्द्रं नमों जोड़ि हाथं, नमो देव-देवं सदा पार्श्वनाथं ||१||

गजेन्द्रं मृगेन्द्रं गह्यो तू छुड़ावे, महा-आग तें, नाग तें तू बचावे |
महावीर तें युद्ध में तू जितावे, महा-रोग तें, बंध तें तू छुड़ावे ||२||

दु:खी-दु:ख-हर्ता, सुखी-सुक्ख-कर्ता, सदा सेवकों को महानंद-भर्ता |
हरे यक्ष राक्षस भूतं पिशाचं, विषम डाकिनी विघ्न के भय अवाचं ||३||

दरिद्रीन को द्रव्य के दान दीने, अपुत्रीन को तू भले पुत्र कीने |
महासंकटों से निकारे विधाता, सबे संपदा सर्व को देहि दाता ||४||

महाचोर को, वज्र को भय निवारे, महापौन के पुंज तें तू उबारे |
महाक्रोध की अग्नि को मेघधारा, महालोभ-शैलेश को वज्र मारा ||५||

महामोह-अंधेर को ज्ञान-भानं, महा-कर्म-कांतार को द्यौ प्रधानं |
किये नाग-नागिन अधोलोक-स्वामी, हर्यो मान तू दैत्य को हो अकामी ||६||

तुही कल्पवृक्षं तुही कामधेनं, तुही दिव्य-चिंतामणी ना-एनं |

पशू-नर्क के दु:ख तें तू छुड़ावे, महास्वर्ग तें, मुक्ति में तू बसावे ||७||

करे लोह को हेम-पाषाण नामी, रटे नाम सो क्यों न हो मोक्षगामी |
करे सेव ताकी करें देव सेवा, सुने बैन सो ही लहे ज्ञान मेवा ||८||

जपे जाप ताको नहीं पाप लागे, धरे ध्यान ताके सबै दोष भागे |
बिना तोहि जाने धरे भव घनेरे, तुम्हारी कृपा तें सरें काज मेरे ||९||

(दोहा)

गणधर इन्द्र न कर सकें, तुम विनती भगवान् |
‘द्यानत’ प्रीति निहार के, कीजे आप समान ||१०||

 

Very Nice Jai Jinendra

by ANKIT JAIN at 07:42 PM, May 20, 2021