जैन धर्म के तीन रत्न



जैन धर्म के तीन रत्न हैं - सम्यक्-दर्शन, सम्यक्-ज्ञान और सम्यक्-चारित्र। इसे रत्नत्रय भी कहा जाता है। इस रत्नत्रय में आत्मा के समस्त अध्यात्म-गुणों का कथन हो जाता है।

  1.सम्यक्-दर्शन- अध्यात्म-मार्ग के पथिक के लिए सर्वप्रथम जैन शास्त्रों में प्रतिपादित सिद्धांतों और तत्वों के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा होना आवश्यक है जिसे सम्यक्-दर्शन कहा गया है।    

  2.सम्यक्-ज्ञान- इन सिद्धांतों और तत्वों के गहन एवं यथार्थ ज्ञान को सम्यक्-ज्ञान कहा गया है। 

  3.सम्यक्-चारित्र- इस ज्ञान को अपने आचरण में चरितार्थ करना सम्यक्-चारित्र है।

श्रद्धा से ज्ञान और चारित्र प्राप्त होते हैं, ज्ञान से चारित्र तथा चारित्र से ज्ञान पुष्ट होता है। यह तीनों एक साथ कार्य करते हैं और साधना पथ को आलोकित करके सिद्धि तक पहुंचाते हैं।

जैन प्रतीक चिह्न में स्वस्तिक के ऊपर प्रदर्शित तीन बिन्दु सम्यक्-दर्शन, सम्यक्-ज्ञान एवं सम्यक्-चारित्र को दर्शाते हैं और संदेश देते हैं कि इस रत्नत्रय के बिना प्राणी मुक्ति को प्राप्त नहीं कर सकता।

धर्म के मार्ग पर अग्रसर होने से पहले अथवा मोक्ष मार्ग की साधना प्रारम्भ करने से पूर्व रत्नत्रय की जानकारी होना आवश्यक है।