जिनालय के शिखर का महत्व



जिस प्रकार समवशरण के ऊपर अशोक वृक्ष होता है उसी प्रकार मंदिर में अशोक वृक्ष के प्रतीक रूप शिखर बनाया जाता है एवं जो लोग परिस्थितिवश मंदिर नहीं जा पाते तो वह दूर से ही शिखर की वंदना करके पुण्यार्जन कर लेते हैं और यदि ऊपर से देवता आदि के विमान निकलते है तो ऊंचे-ऊंचे शिखर देखकर वे भी जिनालय के दर्शन का लाभ उठा पाते हैं। इसलिए भी मंदिर में शिखर बनाए जाते हैं एवं जैसे अशोक वृक्ष के नीचे जाने पर सारे शोक नष्ट हो जाते हैं उसी प्रकार मंदिर के शिखर के नीचे जाकर (परमात्मा) की उपासना करने से भी सारे शोक नष्ट हो जाते हैं। मंदिर के शिखर प्रकृति, से विशुद्ध परमाणुओं को संग्रहीत कर मंदिर में नीचे पहुंचते हैं, जिससे मंदिर का वातावरण शुद्ध बना रहता है। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मंदिर में शिखर बनाए जाते हैं।

 

कलश एवं ध्वजा का महत्व 

कलश मंगल एवं पूर्णता का प्रतीक होते हैं। मानव जब परमात्मा की सतत साधना करता है तो पूर्ण या परमात्मा हो जाता है, मानव का क्रमिक विकास ही परमात्मा हैं जिस तरह से कलश सबसे नीचे बड़ा उसके ऊपर दूसरा उससे छोटा फिर तीसरा उससे छोटा अर्थात क्रम-क्रम से शून्यता की ओर पहुंचता है वैसे ही मनुष्य जैसे-जैसे आकांक्षा, कामना, वासना से छूटता है वैसे ही मनुष्यता को उपलब्ध होकर परमात्मा तत्व को प्राप्त कर लेता है। इसी बात की प्रेरणा हेतु मंदिर के शिखर पर कलश चढ़ाए जाते हैं। मंदिर जी में हो रही भक्ति, पूजन, मंत्र आदि की शब्द वर्गणा को मंदिर के ऊपर की ओर खींचकर ध्वजा के माध्यम से वह पुद्गल शब्द वर्गणा सर्वत्र हवाओं को स्पर्शित होकर व्याप्त होती है और जहां-जहां वह हवा जाती है, वहां-वहां का वातावरण शुद्ध, शांत, सात्विक, धार्मिक होता जाता है। इसलिए कलश के ऊपर ध्वजा लगाई जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हर दिन लोग मंदिर जाकर भगवान की पूजा करते हैं लेकिन किसी कारण से मंदिर नहीं जा पाते हैं तो शास्त्रों में उनके लिए भी उपाय बताया गया है कि मंदिर ना जाने से भी मंदिर जाने का पुण्य मिलता है। माना जाता है कि मंदिर के अंदर नहीं जा पा रहे हैं तो बाहर से ही मंदिर के शिखर को प्रणाम कर सकते हैं। माना जाता है कि शिखर दर्शन से भी उतना पुण्य मिलता है जितना मंदिर में प्रतिमा के दर्शन करने से मिलता है। शास्त्रों में कई जगह लिखा गया है कि शिखर दर्शनम पाप नाशम। इसका अर्थ है कि शिखर के दर्शन कर लेने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

आपने ये एक बहुत ही अच्छा कार्य किया हैं जैन धर्म के मर्म को समझाया है

by Prachi jain at 11:57 AM, Sep 12, 2020